तेरी आँखों की तरह

on सोमवार, 15 जून 2009


बात उन दिनों की है

जब सड़क बन रही थी

कच्चे काले कोलतार की,

और तुमने कहा था -

देख बिल्कुल काली हैं न

तेरी आँखों की तरह।

कोलतार से उठ रहे धुएँ

के बीच

एक दार्शनिक की तरह 

कहा था मैंने -

कुछ सपने हैं सड़क के, अनदेखे-से

पहुँचना है इसे अपनी मन्ज़िल 

उस सुदूर देहात तक,

विकास की किरण के साथ।

और तु्मने दी थी हा्मी -

हाँ, इसके भी कुछ सपने थे

तेरी आँखों की तरह।

अरसे बाद उधर से 

गुजरा मैं, तो देखनी चाही 

मैंने , वह सड़क और उसके 

अनदेखे सपने।

देखा मैंने कि वह सड़क 

अधूरी थी और टुटे हुए थे

उसके वह सपने, विकास के।

तुम साथ नहीं थे , मगर

मेरे आँसुओं ने स्वीकारा -

हाँ, टूट गए हैं वह सपने सड़क के

मेरी आँखों की तरह।

 - अरविन्द कुमार 

(सर्जना २४वें अंक से)

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