सर्जना
सृजन स्वर्ण रथ निकल पड़ा है
सर्जना - सृजन का वह आयाम जो शुरू तो बी. आई. टी. के प्रांगण में होता है, पर फैलते हुए अपनी जडें भारतीय परम्परा और संस्कृति में कहीं गहरे जमा लेता है| लेखनी और मसि-कागद से रची-बसी दुनिया के लोगों का यह सफर यूँ ही चलता रहे...........सर्जना तुझे सलाम |
चक्ररूप यह जोश नया है
अश्वरूप उद्घोष नया है
तपकर जैसे काल अनल में
नई दृष्टि ले नूतन पल में
सृजन स्वर्ण रथ निकल पड़ा है।
सर्जना के संरक्षक सर्जना वितान के नियमित वार्षिक सम- सामयिक चर्चा सत्रों की स्मारिकाएं क्रमशः वैतालिक, स्मृतिगंधा, पुनरपि एवं ऊर्ध्व नाम से प्रकशित हुई हैं | इनमे से तीन पत्रिकाएँ ऑनलाइन उपलब्ध हैं एवं इस साईट में सबसे ऊपर दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं | इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं हमें vitaan.sarjana@gmail.com पर भेज सकते हैं |
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