एक झूठ

on शुक्रवार, 5 जून 2009


अंधेरे में बैठा अंधा रास्ते का पूर्वानुमान कर रहा है। अपनी छोटी से बुद्धि में बडी़-बडी़ चीजें बैठा रहा है। मन के जरिए रचना को समझने की नाकामयाब कोशिश।

कहाँ से आए, कहाँ को जाना। कुछ नहीं पता। बढे़ चलो, बढ़े चलो। भीड़ जिधर-जिधर चले, चले चलो। ठहरो। खाँ-खाँ , हफ़-हफ़, सामने ये कौन खडी़ है- कुरूप, अवांछित, लाल-लाल आँखें, भयानक चेहरा - मृत्यु, एक सत्य। 

नहीं-नहीं, जाने दो। देखो भीड़ आगे जा रही है, नारा लगा रही है - बढे़ चलो। उस भीड़ में वो लड़का कैसे दौड रहा है, सबको पीछे छोड रहा है। वो लेटा है, वो उठ बैठा है, वो गिरता है, वो उठ कर फिर चलता है। मुझको भी जाने दो। जीवन से कुछ पाने दो। 

अभी पत्नी है मेरी, सुन्दर-जवान कि जिसकी आँखों में मैंने जीवन देखा था। डूबा था। बच्चे हैं मेरे - मैं गया तो इनका क्या होगा। सब कुछ थम जाएगा। जीवन गति रूक जाएगी कितनों की। देखो, तुम करीब न आओ। चाहो तो सब कुछ ले लो - रूपया, पैसा, सोना, चाँदी। नहीं नहीं..........आह। तत्व, तत्व में मिल गया। ठहराव खत्म हुआ। मुसाफ़िर अपने कर्मों की गठरी ले आगे चल पडा। किराए का मकान था, एक रोज़ खाली करना पडा।

क्रन्दन, जीवन के रंगमंच पर एक नया दृश्य। एक कलाकार गया - नाटक जारी है। यक्ष को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल गया कि आश्चर्य क्या है। मृत्यु तो उनके लिए थी, हमारे लिए तो दौड है - बढे़ चलो, बढे़ चलो। जीवनगति क्रमवार है। खाने में स्वाद और आया है, और आँखों में नींद। पत्नी खुश, बच्चे खुश। जीवन खुश। ऊँ शांति, ऊँ शांति, ऊँ शांति। साल में एक दिन अख़बार में उनकी तसवीर छपती है और नीचे लिखा होता है एक झूठ कि - "जीवन ठहर-सा गया है, तुम्हारे जाने के बाद।

-- सत्यप्रकाश 

(सर्जना २५वें अंक से) 

3 comments:

Unknown ने कहा…

saadhu !
saadhu !
bahut achha.........

drishtipat ने कहा…

क्रन्दन, जीवन के रंगमंच पर एक नया दृश्य। एक कलाकार गया - नाटक जारी है। यक्ष को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल गया कि आश्चर्य क्या है। मृत्यु तो उनके लिए थी, हमारे लिए तो दौड है - बढे़ चलो, बढे़ चलो। जीवनगति क्रमवार है। खाने में स्वाद और आया है, और आँखों में नींद। पत्नी खुश, बच्चे खुश। जीवन खुश। ऊँ शांति, ऊँ शांति, ऊँ शांति। साल में एक दिन अख़बार में उनकी तसवीर छपती है और नीचे लिखा होता है एक झूठ कि - "जीवन ठहर-सा गया है, तुम्हारे जाने के बाद।
भाई सत्यकाम जी मन को मथने वाली बात. कहानी उम्दा हैं. अभी और मैं पढूंगा आपके ब्लॉग को.
बहुत-बहुत धयवाद

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

pahali bar comment likhane se pahale sochna pada. fir bhee shabd nahin mile. narayan narayan

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