बोलते अक्षर

on शुक्रवार, 10 जुलाई 2009


अक्षर,
जो क्षय नहीं होते
मानव की भांति नहीं रोते
अंकित हो जाते हैं हृदय पर
पुकारते हैं अपनी आवाज़ से
हाँ, अक्षर भी बोलते हैं
तुमने सुनी नहीं अब तक
शायद तुम पढ़ते-लिखते
रहे हो अक्षरों को,
जानते नहीं सच
बोलने वाले अक्षर
नए नहीं हैं
सदियों से वे सुना रहे हैं
दास्तान अपनी

शब्दों से भी बड़े हैं,
ये अक्षर जो जोड़ते हैं
कभी-कभी ज़िन्दगी भी
साक्षर होने का मतलब ये
नहीं कि तुम सुन पाओगे
अक्षरों की ध्वनि से परिचित हो
गाथाओं को बुन पाओगे,
क्योंकि तुम तो क्षणिक हो
अविनाशी एवं निरन्तर जो हैं,
वे क्षणभंगुर नहीं होते,
अक्षर,
जो क्षय नहीं होते।

-- दीपक कुमार


(सर्जना २५वें अंक से)

2 comments:

Unknown ने कहा…

umda kavita
_______badhaai !

अदीप ने कहा…

sir, kai din hue koi nayee rachna nahi dikhi hai yahan...akhiri baar 10 july...asha hai jald hi kuchh nayaa padhane ko milega..

एक टिप्पणी भेजें